Madhu varma

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लेखनी कविता - आओ फिर से दिया जलाएँ -अटल बिहारी वाजपेयी

आओ फिर से दिया जलाएँ -अटल बिहारी वाजपेयी

आओ फिर से दिया जलाएँ
 भरी दुपहरी में अंधियारा
 सूरज परछाई से हारा
 अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
 आओ फिर से दिया जलाएँ

 हम पड़ाव को समझे मंज़िल
 लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
 वतर्मान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएँ।
 आओ फिर से दिया जलाएँ।

 आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
 अपनों के विघ्नों ने घेरा
 अंतिम जय का वज़्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।
 आओ फिर से दिया जलाएँ

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